लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक बार फिर जंगल के कानून ने जमकर तोड़फोड़ मचाई। इस बार माया सरकार के बुलडोजर के निशाने पर थे सिंचाई विभाग के दफ्तर और सरकारी घर हैं। प्रदेश सरकार इस जमीन पर एक स्मारक बनवाना चाहती हैं। लोगों के लाख विरोध के बाद भी दफ्तर और घरों को आनन-फानन में ढहा दिया गया। लोगों को इतना वक्त भी नहीं मिला की वो अपना सामान हटा सके।
सूत्रों के मुताबिक माया सरकार उस जगह पर कांशीराम की याद में स्मारक बनवाना चाहती है। जिस सरकारी कॉलोनी पर आज बुलडोजर चला। ये कॉलोनी तकरीबन 25 साल पहले बनी थी और ये इजीनियरों के लिए आवंटित है। यहां कई दफ्तर भी थे। इंजीनियरों की एसोसिएशन इस कॉलोनी और दफ्तरों को गिराने का विरोध कर रही थी। लेकिन सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी। पूरे इलाके में पीएसी तैनात कर दी गई। कॉलोनी को छावनी में तब्दील कर दिया गया।
इंजीनियरों की मानें तो उन्हें इतना मौका भी नहीं मिला कि वो महत्वपूर्ण सरकारी अभिलेख हटा सकते। एसोसिएशन ने इसे इंजीनियरिंग के इतिहास का काला दिन करार दिया है।
कॉलोनी तोड़े जाने के बारे में कोई भी सरकारी अधिकारी कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि जिन लोगों के मकान भी गिराए गए हैं उन्हें मकान आवंटित कर दिया गया है। उधर सरकारी प्रवक्ता की मानें तो ये फैसला तकनीकी रिपोर्ट के आधार पर लिया गया जिसमें कहा गया है कि ये भवन जर्जर हो चुके हैं।
दरएसल ऐसा करने के लिए मायावती सरकार ने अदालत को भी गुमराह किया है। सरकार ने अदालत में वायदा किया था बुलडोजर चलाने का उसका इरादा नहीं है। सरकार की तरफ से बतौर वकील अदालत पहुंचे बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीशचंद्र मिश्र ने कहा कि सरकार ने कॉलोनी या इमारत को गिराने का कोई फैसला नहीं किया है।
वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा कि इस मामले में समाजवादी पार्टी एक कमेटी बना कर इसकी जांच करेगी और मुख्यमंत्री से इसका हिसाब लेगी।
सूत्रों के मुताबिक माया सरकार उस जगह पर कांशीराम की याद में स्मारक बनवाना चाहती है। जिस सरकारी कॉलोनी पर आज बुलडोजर चला। ये कॉलोनी तकरीबन 25 साल पहले बनी थी और ये इजीनियरों के लिए आवंटित है। यहां कई दफ्तर भी थे। इंजीनियरों की एसोसिएशन इस कॉलोनी और दफ्तरों को गिराने का विरोध कर रही थी। लेकिन सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी। पूरे इलाके में पीएसी तैनात कर दी गई। कॉलोनी को छावनी में तब्दील कर दिया गया।
इंजीनियरों की मानें तो उन्हें इतना मौका भी नहीं मिला कि वो महत्वपूर्ण सरकारी अभिलेख हटा सकते। एसोसिएशन ने इसे इंजीनियरिंग के इतिहास का काला दिन करार दिया है।
कॉलोनी तोड़े जाने के बारे में कोई भी सरकारी अधिकारी कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि जिन लोगों के मकान भी गिराए गए हैं उन्हें मकान आवंटित कर दिया गया है। उधर सरकारी प्रवक्ता की मानें तो ये फैसला तकनीकी रिपोर्ट के आधार पर लिया गया जिसमें कहा गया है कि ये भवन जर्जर हो चुके हैं।
दरएसल ऐसा करने के लिए मायावती सरकार ने अदालत को भी गुमराह किया है। सरकार ने अदालत में वायदा किया था बुलडोजर चलाने का उसका इरादा नहीं है। सरकार की तरफ से बतौर वकील अदालत पहुंचे बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीशचंद्र मिश्र ने कहा कि सरकार ने कॉलोनी या इमारत को गिराने का कोई फैसला नहीं किया है।
वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा कि इस मामले में समाजवादी पार्टी एक कमेटी बना कर इसकी जांच करेगी और मुख्यमंत्री से इसका हिसाब लेगी।
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