संजय शर्मा
आगरा। देश में शिक्षा के नाम पर पर्यावरण संतुलन को ध्वस्त किया जा रहा है। इसके लिए दुर्लभ जीवों का कारोबार और हत्या बेखौफ जारी है। जहां वन विभाग और पर्यावरण अधिकारी इस धंधे से पूरी तरह बेखबर थे, वहीं दिल्ली के एक पर्यावरण प्रेमी की पहल पर मामले का खुलासा हुआ। सूचना के बाद पुलिस ने इस रकैट का पर्दाफाश कर न केवल 6 लोगों को गिरफ्तार किया, बल्कि भारी मात्रा में मृत जीव-जंतू, पक्षी और जानवर बरामद किए। इन्हें फोर्मिलिन रसायन में सुरक्षित रखा गया था। हालांकि सूचना के बाद चैन्नई पुलिस ने इस मामले दो स्थानों पर छापे मारकर दो लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन आगरा में गिरोह का मुखिया ब्रिजेश अभी फरार है।
वल्र्ड लाईफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत देश में जीवों की खरीद-फरौख्त पूरी तरह प्रतिबंधित है, बावजूद इसके देश के स्कूल कालेजों में शिक्षा के नाम पर इनकी डिमांड और सप्लाई बढ़ी, जिस कारण बीती एक दशक में आगरा इस धंधे का बड़ा ट्रेडसेंटर बनकर उभरा है। यहां से हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, बिहार, उतरांचल प्रदेश व देश के विभिन्न इलाकों में दुर्लभ जीवों की सप्लाई की जाती है।
जांच एजेंसियों की माने तो शहर में बांयोसाइंस के नाम पर दुर्लभ जीवों का कारोबार करने वाले 30 से अधिक डीलर है, जिनके तार चैन्नई के अलावा विदेशों तक जुड़े हैं।
मामले का खुलासा उस समय हुआ जब पुलिस ने प्रोफेशनल कोरियर के संजय पलेस स्थित आफिस 29 एफ में छापा मारा। यहां से पुलिस को भारी मात्रा में वन्य और समुद्री जीव मिले। जो पैक करके बाहर भेजे जा रहे थे। यहां से पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया, जबकि इस धंधे को चलाने वाला ब्रिजेश कुमार उपाध्याय अभी फरार है। इसके बाद पुलिस ने कैलाश पुरी कोलोनी स्थित मकान संख्या 13-ई छापा मारा। यह मकान ब्रिजेश का है। यहां से भी पुलिस को भारी मात्रा में वन्य व समुद्री जीव मिलें। बरामद जीवों की संख्या इतनी ज्यादा है कि एक सप्ताह के बाद भी इनकी गिनती जारी है, जिनका बाजार मुल्य अरबो रुपए में होने का अनुमान है। बरामद जीवों की खेप, बरामद जीवों में मगरमछ, स्टींग रे फिश, वाईपर्स नेक, मेढ़क, सीक, कोरल, सी-हार्स, गीरगिट, आक्टोपस, शार्क, शैंटीपिक, कछुए, कीट पतंगे, कोबरा, ओरोबैन्की, फोग्स एडं माईक लक्स, इलक्ट्रीक रे, लोलीगो, खरगोश, तोता, बटरफ्लाई, सीप व अन्य कई दुर्लभ प्रजातियां शामिल हैं।
आगरा के एसएसपी दिपेश जुनेजा के मुताबिक बरामद माल रायल बायलॉजीकल लैब सदापीठ चैन्नई से प्रोफेशनल कोरियर के माध्यम से भेजा गया था। उनके मुताबिक रायल बायलॉजीकल लैब के मालिक प्रोफेशनल कोरियर के नाम से दुर्लभ जीवों का कारोबार करते हैं। इस मामले में बृज भूमि फोरेस्ट डिविजन आगरा के अधिकारी के मुताबिक बरामद जीवों में अधिकांश जीव भारत में नहीं पाए जाते। यह जीव यूके, यूएस और यूरोपिय देशों से आयात किए जाने के क्यास लगाए जा रहे हैं। पर्यावरण प्रेमी का कहना है कि आधुनिक युग में स्कूलों में शिक्षा के लिए जहां अनेक साफ्टवेयर मौजूद हैं, वहीं इंटरनेट पर इसकी पूरी जानकारी उपलब्ध हो जाती है। एसे में दुर्लभ और प्रतिबंधित जीवों को रखना पूरी तरह अनुचित है। उनके अनुसार बरामद जीव वाईल्ड लाईफ प्रोटेक्शन एक्ट के शड्युल्ड वन, टू, के तहत प्रतिबंधित है। इनके शिकार, भंडारण के मामले में लेपर्ड के बराबर संज्ञेय अपराध है। उनके मुताबिक एक कोबरा की कीमत करीब 1 लाख से अधिक होती है, जबकि वाईपर्स कोबरा से 10 गुना ज्यादा जहरीला होता है।
आगरा। देश में शिक्षा के नाम पर पर्यावरण संतुलन को ध्वस्त किया जा रहा है। इसके लिए दुर्लभ जीवों का कारोबार और हत्या बेखौफ जारी है। जहां वन विभाग और पर्यावरण अधिकारी इस धंधे से पूरी तरह बेखबर थे, वहीं दिल्ली के एक पर्यावरण प्रेमी की पहल पर मामले का खुलासा हुआ। सूचना के बाद पुलिस ने इस रकैट का पर्दाफाश कर न केवल 6 लोगों को गिरफ्तार किया, बल्कि भारी मात्रा में मृत जीव-जंतू, पक्षी और जानवर बरामद किए। इन्हें फोर्मिलिन रसायन में सुरक्षित रखा गया था। हालांकि सूचना के बाद चैन्नई पुलिस ने इस मामले दो स्थानों पर छापे मारकर दो लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन आगरा में गिरोह का मुखिया ब्रिजेश अभी फरार है।
वल्र्ड लाईफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत देश में जीवों की खरीद-फरौख्त पूरी तरह प्रतिबंधित है, बावजूद इसके देश के स्कूल कालेजों में शिक्षा के नाम पर इनकी डिमांड और सप्लाई बढ़ी, जिस कारण बीती एक दशक में आगरा इस धंधे का बड़ा ट्रेडसेंटर बनकर उभरा है। यहां से हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, बिहार, उतरांचल प्रदेश व देश के विभिन्न इलाकों में दुर्लभ जीवों की सप्लाई की जाती है।
जांच एजेंसियों की माने तो शहर में बांयोसाइंस के नाम पर दुर्लभ जीवों का कारोबार करने वाले 30 से अधिक डीलर है, जिनके तार चैन्नई के अलावा विदेशों तक जुड़े हैं।
मामले का खुलासा उस समय हुआ जब पुलिस ने प्रोफेशनल कोरियर के संजय पलेस स्थित आफिस 29 एफ में छापा मारा। यहां से पुलिस को भारी मात्रा में वन्य और समुद्री जीव मिले। जो पैक करके बाहर भेजे जा रहे थे। यहां से पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया, जबकि इस धंधे को चलाने वाला ब्रिजेश कुमार उपाध्याय अभी फरार है। इसके बाद पुलिस ने कैलाश पुरी कोलोनी स्थित मकान संख्या 13-ई छापा मारा। यह मकान ब्रिजेश का है। यहां से भी पुलिस को भारी मात्रा में वन्य व समुद्री जीव मिलें। बरामद जीवों की संख्या इतनी ज्यादा है कि एक सप्ताह के बाद भी इनकी गिनती जारी है, जिनका बाजार मुल्य अरबो रुपए में होने का अनुमान है। बरामद जीवों की खेप, बरामद जीवों में मगरमछ, स्टींग रे फिश, वाईपर्स नेक, मेढ़क, सीक, कोरल, सी-हार्स, गीरगिट, आक्टोपस, शार्क, शैंटीपिक, कछुए, कीट पतंगे, कोबरा, ओरोबैन्की, फोग्स एडं माईक लक्स, इलक्ट्रीक रे, लोलीगो, खरगोश, तोता, बटरफ्लाई, सीप व अन्य कई दुर्लभ प्रजातियां शामिल हैं।
आगरा के एसएसपी दिपेश जुनेजा के मुताबिक बरामद माल रायल बायलॉजीकल लैब सदापीठ चैन्नई से प्रोफेशनल कोरियर के माध्यम से भेजा गया था। उनके मुताबिक रायल बायलॉजीकल लैब के मालिक प्रोफेशनल कोरियर के नाम से दुर्लभ जीवों का कारोबार करते हैं। इस मामले में बृज भूमि फोरेस्ट डिविजन आगरा के अधिकारी के मुताबिक बरामद जीवों में अधिकांश जीव भारत में नहीं पाए जाते। यह जीव यूके, यूएस और यूरोपिय देशों से आयात किए जाने के क्यास लगाए जा रहे हैं। पर्यावरण प्रेमी का कहना है कि आधुनिक युग में स्कूलों में शिक्षा के लिए जहां अनेक साफ्टवेयर मौजूद हैं, वहीं इंटरनेट पर इसकी पूरी जानकारी उपलब्ध हो जाती है। एसे में दुर्लभ और प्रतिबंधित जीवों को रखना पूरी तरह अनुचित है। उनके अनुसार बरामद जीव वाईल्ड लाईफ प्रोटेक्शन एक्ट के शड्युल्ड वन, टू, के तहत प्रतिबंधित है। इनके शिकार, भंडारण के मामले में लेपर्ड के बराबर संज्ञेय अपराध है। उनके मुताबिक एक कोबरा की कीमत करीब 1 लाख से अधिक होती है, जबकि वाईपर्स कोबरा से 10 गुना ज्यादा जहरीला होता है।